Poem about finding love

“इबादत और दरद”

मेरी हर इबादत का ये ख़ूबसूरत अंजाम मिला,
चले जिस भी राह पर, महबूब का ही बस नाम मिला।

फिरा दर-ब-दर, इस क़दर ज़ख़्म दिए ख़ुद को…
रब ने पूछा, क्या दिल के दर्द को अब आराम मिला?

हर शाम तेरी यादों का एक मेला सज गया,
अंधेरों में भी तेरा चेहरा मुझको हर शाम मिला।

मुद्दतों बाद आज कुछ ख़्वाबों ने दस्तक दी,
पूछा जो हाल-ए-दिल, तेरा ही कोई पैग़ाम मिला।

टूटी सांसों में जब वफ़ाओं की आहट आई,
लबों से नहीं, मगर आंखों से एक सलाम मिला।

अब तो ख़ुद को भी पहचान नहीं पाता हूँ मैं,
तेरे इश्क़ में ऐसा गुम हुआ, बस तेरा ही नाम मिला।

By HighwarSniper